Thursday, October 01, 2009

हम पंछी उनमुक्त गगन के...!!

One of my favorites..truly inspirational...!!


हम पंछी उन्मुक्त गगन के

पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे

कनक-तीलियों से टकराकर

पुलकित पंख टूट जाऍंगे ।



हम बहता जल पीनेवाले

मर जाऍंगे भूखे-प्यासे

कहीं भली है कटुक निबोरी

कनक-कटोरी की मैदा से ।



स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में

अपनी गति, उड़ान सब भूले

बस सपनों में देख रहे हैं

तरू की फुनगी पर के झूले ।



ऐसे थे अरमान कि उड़ते

नील गगन की सीमा पाने

लाल किरण-सी चोंच खोल

चुगते तारक-अनार के दाने ।



होती सीमाहीन क्षितिज से

इन पंखों की होड़ा-होड़ी

या तो क्षितिज मिलन बन जाता

या तनती सॉंसों की डोरी ।



नीड़ न दो, चाहे टहनी का

आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो

लेकिन पंख दिए हैं तो

आकुल उड़ान में विघ्न न डालो ।





-शिवमंगल सिंह सुमन

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